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Stablecoin Launch करने के लिए JPMorgan और BoA ने की पार्टनरशिप

Cryptocurrency को लेकर लम्बे समय तक संदेह में रहने वाले अमेरिका के टॉप बैंक अब खुद Digital Finance की दिशा में बड़ा कदम उठाने जा रहे हैं। बैंकों का यह नया Stablecoin Project दरअसल एक स्ट्रेटेजिक कदम है। इससे पहले ये बैंक Crypto Technology को लेकर काफी अलर्ट थे। 

यह Digital Currency, Zelle और The Clearing House जैसे Payment Network के ज़रिए चलाई जाएगी। इस पहल का उद्देश्य न केवल ट्रांज़ैक्शन को फास्ट और आसान बनाना है, बल्कि बदलते हुए फाइनेंशियल मार्केट में बैंकों की पकड़ बनाए रखना भी है। Wall Street Journal (WSJ) की रिपोर्ट के अनुसार, JP Morgan Chase, Bank of America, Citigroup और Wells Fargo मिलकर एक Shared Stablecoin Launch करने की योजना बना रहे हैं।

क्या है Stablecoin और क्यों कर रहे हैं बैंक इसकी योजना?

ये एक प्रकार की डिजिटल करंसी होती है, जिसकी वैल्यू किसी Stable Asset जैसे US Dollar से जुड़ी होती है। इसका उद्देश्य होता है – प्राइस स्टेबल रखना। इन बैंकों की योजना है कि वे एक ऐसा डिजिटल डॉलर लॉन्च करें जो यूज़र्स को तेज़ और सुरक्षित ट्रांज़ैक्शन की सुविधा दे, साथ ही बैंकों की मार्केट पकड़ को बनाए रखने में मदद करे।

अमेरिका में स्टेबलकॉइन को लेकर क्या हो रहा है?

अब जब Stablecoin जैसे डिजिटल टोकन लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं, तो बैंक इसे एक अवसर की तरह देख रहे हैं।

इस डिजिटल डॉलर को अमेरिका के दो बड़े नेटवर्क्स 

  • Zelle (Early Warning Services द्वारा ऑपरेट)

  • The Clearing House (रियल-टाइम पेमेंट्स का नेटवर्क) के ज़रिए यूज़ किया जाएगा।

इसके ज़रिए लोग तेज़, सस्ते और ट्रस्टेड ट्रांज़ैक्शन कर पाएंगे और बैंक अपनी मौजूदा यूज़रबेस को बनाए रख सकेंगे।

कौन-कौन से बैंक हैं इस योजना में शामिल?

WSJ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट में अमेरिका के चार सबसे बड़े बैंक शामिल हैं:

  • JP Morgan Chase

  • Bank of America

  • Citigroup

  • Wells Fargo

ये सभी बैंक Early Warning Services (जो कि Zelle चलाता है) और The Clearing House (जो रियल-टाइम पेमेंट नेटवर्क ऑपरेट करता है) में हिस्सेदारी रखते हैं। इन्हीं नेटवर्क्स के जरिए ये Fixed Value Coin ऑपरेट किया जाएगा।

Stablecoin पर बढ़ता अमेरिकी कंट्रोल 

हाल ही में US Senate ने GENIUS Act पास किया है जो Stablecoin को रेगुलेट करने का पहला बड़ा कदम माना जा रहा है। साथ ही President Donald Trump ने भी Cryptocurrency के सपोर्ट में बयान दिए हैं, जिससे यह साफ होता है कि अमेरिका ट्रेडिशनल बैंकिंग और क्रिप्टो को साथ लाने के लिए गंभीर है।

भारत के लिए यह कदम क्या संकेत देता है?

मेरी क्रिप्टो रिसर्च के अनुसार, अब बात भारत की करें तो यहां क्रिप्टोकरेंसी को लेकर स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं है। जहां एक ओर भारत सरकार ने टैक्सेशन और KYC जैसी मॉनिटरिंग पॉलिसी अपनाई है, वहीं कोई भी ठोस रेगुलेटरी फ्रेमवर्क अब तक नहीं आया है। भारत यदि इस दौड़ में पीछे नहीं रहना चाहता, तो उसे भी ट्रांसपेरेंट और Crypto Regulation की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाने होंगे।

इसी पर बयान देते हुए MP Balayogi ने कहा की भारत को Crypto Regulations की लीडरशिप करना चाहिए। उनके अनुसार, भारत के पास अब अवसर है कि वह ग्लोबल डिजिटल एसेट इकोसिस्टम में लीडरशिप की भूमिका निभाते हुए एक मजबूत राष्ट्र के रूप में उभर सके।

ऐसे में अमेरिका की इस पहल से भारत को तीन महत्वपूर्ण संकेत मिलते हैं:

  • इस Blockchain Based Stable Asset को खतरे की बजाय अवसर की तरह देखना होगा।

  • सरकारी डिजिटल करेंसी (CBDC) के साथ-साथ प्राइवेट डिजिटल टोकन को भी जगह देनी होगी।

  • बैंकिंग सेक्टर और क्रिप्टो सेक्टर को टकराव की बजाय सहयोग में लाना होगा।

भारत में स्टेबलकॉइन को लेकर अब भी असमंजस है, जबकि अमेरिकी बैंक अब खुद इस टेक्नोलॉजी में निवेश कर रहे हैं।

कन्क्लूजन 

JP Morgan, Citigroup और Bank of America जैसे दिग्गज जब एक साथ आकर डिजिटल डॉलर लॉन्च करने की योजना बनाते हैं, तो यह दुनिया भर के फाइनेंशियल सेक्टर के लिए एक बड़ा संकेत है। यह सिर्फ टेक्नोलॉजी का मामला नहीं, बल्कि भविष्य की डिजिटल इकोनॉमी में लीडरशिप की दौड़ है। 

Akansha Vyas
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