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Trump से जुड़ी Pak-US Crypto Deal पर India की पैनी नजर

पहलगाम अटैक के बाद सुरक्षा और कूटनीतिक मोर्चों पर भारत जहां पहले से ही सतर्क है। ऐसे में पकिस्तान और अमेरिका के बीच हुई एक Pak-US Crypto Deal ने भारत की चिंता और बढ़ा दी है। यह डील सिर्फ इकॉनोमिक नहीं, बल्कि पॉलिटिकल और स्ट्रेटेजिक पॉइंट ऑफ़ व्यू से भी काफी अहम मानी जा रही है। इसमें US President Donald Trump की फैमिली और फर्म से जुड़े लोगों और Pakistan के Army Chief General Asim Munir की सीधी भागीदारी इसे और सस्पीशियस बना रही है।

Crypto Deal का बैकग्राउंड: पाकिस्तान का क्रिप्टो में बड़ा दांव

Finance Ministry Of Pakistan की ओर से जारी एक प्रेस स्टेटमेंट के मुताबिक, पाकिस्तान की Pakistan Crypto Council (PCC) और अमेरिकी कंपनी World Liberty Financial (WLFI) के बीच क्रिप्टो से जुड़ा यह समझौता हुआ है। इस डील का उद्देश्य पाकिस्तान को क्रिप्टो टेक्नोलॉजी और ब्लॉकचेन हब में बदलना है। इस प्रोजेक्ट में डिजिटल असेट्स का टोकनाइजेशन, Stablecoins का निर्माण और DeFi बिजनेस के लिए रेगुलेटरी सैंडबॉक्स तैयार करना शामिल है।

ट्रंप कनेक्शन: समझौते में अमेरिकी राष्ट्रपति का इनडायरेक्ट इनवॉल्वमेंट

Pak-US Crypto Deal को लेकर सबसे ज्यादा ध्यान खींचा है US President Donald Trump से जुड़े नामों ने। डील करने आए अमेरिकी डेलीगेशन में शामिल थे Zachary Folkman, Chase Herro और Zachary Witkoff। Zachary, अमेरिका के मिडिल ईस्ट के Special Envoy Steve Witkoff के बेटे हैं, जो Donald Trump के करीबी और लंबे समय से उनके बिजनेस पार्टनर भी रहे हैं। हालांकि, ट्रंप फैमिली या अमेरिकी सरकार की ओर से अब तक इस डील पर कोई ऑफिशियल स्टेटमेंट नहीं आया है। खास बात यह है कि इस डील से जुड़ी कंपनी World Liberty Financial (WLF) में ट्रंप फैमिली की 60% हिस्सेदारी है और कंपनी के Net Revenue का 75% हिस्सा सीधे ट्रंप फैमिली को जाता है, जिससे इस डील की ट्रांसपेरेंसी और उद्देश्य पर और भी ज्यादा सवाल खड़े हो रहे हैं।

पाक आर्मी की भूमिका: General Munir क्यों आए सामने?

इस Pak-US Crypto Deal की संवेदनशीलता इस बात से और बढ़ जाती है कि Pakistan के Army Chief General Asim Munir ने न सिर्फ अमेरिकी डेलीगेशन से मुलाकात की, बल्कि Prime Minister Shahbaz Sharif के साथ मिलकर एक क्लोज डोर मीटिंग में डील को फाइनलाइज्ड किया। पाकिस्तान में सेना की भूमिका हमेशा से ही पॉलिसी मेकिंग में प्रमुख रही है और इस इकॉनोमिक एग्रीमेंट में आर्मी चीफ़ की सीधी भागीदारी कई सवाल खड़े करती है।

भारत की चिंता: स्ट्रेटेजिक एस्पेक्ट और फाइनेंशियल ट्रांसपेरेंसी

Pak-US Crypto Deal को भारत केवल एक टेक्निकल स्टेप नहीं, बल्कि इसके पीछे छिपे पॉलिटिकल और स्ट्रेटेजिक सिग्नल के तौर पर देख रहा है। खासकर उस वक्त, जब कश्मीर घाटी में हालात तनावपूर्ण हैं और हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने देश को झकझोर दिया है। इस हमले में 26 भारतीय पर्यटकों की निर्मम हत्या ने न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया में आक्रोश पैदा किया है और पाकिस्तान की ग्लोबल इमेज को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। ऐसे समय में पाकिस्तान का ‘क्रिप्टो हब’ बनने का सपना भी सवालों के घेरे में आ गया है। आतंकवाद और टेक्निकल पार्टनरशिप के बीच यह विरोधाभास भारत और इंटरनेशनल कम्युनिटी दोनों के लिए गहरी चिंता का विषय बन गया है।

डिजिटल फाइनेंस या डिप्लोमेसी का नया हथियार?

डिजिटल फाइनेंस को जहां एक ओर डेवलपमेंट का जरिया माना जा रहा है, वहीं पाकिस्तान में इसकी एंट्री एक बड़े डिप्लोमेटिक और स्ट्रेटेजिक गेम की तरह देखी जा रही है। यह Pak-US Crypto Deal पाकिस्तान के लिए फाइनेंशियल इनक्लूजन और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन का दावा करती है, लेकिन इसकी टाइमिंग और अमेरिकी एलिमेंट्स की मौजूदगी इसे एक ‘बैक चैनल डिप्लोमेसी’ जैसा रंग देती है।

कन्क्लूजन

पाकिस्तान और अमेरिका के बीच हुई यह Pak-US Crypto Deal नॉर्मल ट्रेड एग्रीमेंट नहीं लगता। इसमें शामिल पक्षों की प्रोफाइल, पाक आर्मी की भागीदारी और भारत-पाक संबंधों की संवेदनशील स्थिति इसे और कॉम्पलिकेटेड बना देती है। भारत के लिए अब यह जरूरी हो गया है कि वह इस डील की हर परत को गहराई से समझे और इसके संभावित स्ट्रेटेजिक इम्प्लिकेशंस पर नजर रखे। क्योंकि आज के दौर में टेक्नोलॉजी सिर्फ इनोवेशन नहीं, पॉलिटिकल पॉवर का भी जरिया बन गई है।

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Srishty Malviya
Hindi Content Writer
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