P2P Crypto Exchange क्या होते हैं, यह कैसे काम करते हैं?
क्रिप्टो मार्केट अब भी कम रेगुलेशन और लीगल इम्युनिटी की दिक्कतों से जूझ रहा है जिसके कारण आये दिन हमें Crypto Exchange Hack से जुड़ी खबरे सुनने को मिल जाती है। चूँकि अधिकांश उपयोग किये जाने वाले ट्रेडिंग प्लेटफार्म सेंट्रलाइज होते हैं और ट्रेडर के क्रिप्टो एसेट की कस्टडी भी खुद ही रखते हैं ऐसे में उस प्लेटफार्म से जुड़े लाखों लोगो के एसेट खतरे में पड़ जाते हैं।
अब सवाल यह है कि ट्रेडर के पास कोई ऐसा भी ऑप्शन है जिसमे वो रियल टाइम में ट्रेडिंग भी कर पाए और उसके साथ ही अपने एसेट की कस्टडी भी उसी के पास रहे तो जवाब है, आपने P2P Crypto Exchange या Decentralised Exchanges के बारे में तो जरुर सुना होगा। यह एक्सचेंज किसी थर्ड पार्टी के इन्वोल्वेमेंट या आपकी क्रिप्टो की कस्टडी लिए बिना काम करते हैं और आपको ट्रेडिंग की सुविधा देते हैं।
इस ब्लॉग में हम आसान भाषा में जानेंगे कि P2P Crypto Exchange क्या होता है, यह कैसे काम करता है, इसके फायदे और जोखिम क्या हैं और यह सेंट्रलाइज़्ड एक्सचेंज से कैसे अलग है?
P2P Crypto Exchange क्या है?
P2P Crypto Exchange एक ऐसा प्लेटफॉर्म होता है जहां यूजर्स एक-दूसरे से सीधे क्रिप्टोकरेंसी खरीद और बेच सकते हैं। इसमें कोई बैंक, कंपनी या मिडिलमैन नहीं होता है यानी यह एक डिसेंट्रलाइज्ड मार्केटप्लेस होता है।
इन प्लेटफॉर्म्स पर ट्रेडिंग Escrow System के जरिए होती है, जिसके द्वारा ट्रेड पूरी होने तक क्रिप्टो एसेट सिक्योर रखा जाता है।
Escrow System: P2P प्लेटफार्म पर सिक्योरिटी का गारंटर
Escrow System, P2P Crypto Exchange का सबसे ज़रूरी सिक्योरिटी फीचर होता है। जब कोई बायर और सेलर किसी डील पर सहमत होते हैं, तो प्लेटफॉर्म क्रिप्टोकरेंसी को एक सिक्योर वॉलेट में लॉक कर देता है, जिसे एस्क्रो वॉलेट कहा जाता है।
इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जब तक बायर पेमेंट पूरा नहीं करता, तब तक सेलर को क्रिप्टो वापस न मिले और जब तक सेलर पेमेंट कन्फर्म नहीं करता, तब तक बायर को क्रिप्टो रिलीज न हो।
यह सिस्टम फ्रॉड को रोकने में बेहद कारगर है और ट्रेड के दोनों पक्षों को भरोसा देता है कि उनका फंड सुरक्षित है।
उदाहरण के तौर पर, अगर बायर ने पेमेंट कर दिया लेकिन सेलर यह बोले कि पेमेंट नहीं आया, तो बायर के पास स्क्रीनशॉट, पेमेंट प्रूफ आदि के ज़रिए प्लेटफॉर्म से शिकायत करने का अधिकार होता है। इसके बाद प्लेटफॉर्म मामले को इन्वेस्टिगेट करके डिसिजन लेता है कि क्रिप्टो कहाँ रिलीज किये जाने चाहिए।
Peer-to-Peer ट्रेडिंग कैसे काम करती है?
P2P Crypto Exchange का पूरा सिस्टम कुछ आसान स्टेप्स में काम करता है:
1. अकाउंट बनाना और केवाईसी: यूजर को पहले प्लेटफॉर्म पर रजिस्ट्रेशन करना होता है। कुछ प्लेटफॉर्म KYC भी मांगते हैं, जिससे कि सिक्योरिटी बनी रहे।
2. ऑफर पोस्ट करना: सेलर अपने ऑफर पोस्ट करता है, जैसे वो कौन-सी क्रिप्टो बेचना चाहता है, किस रेट पर और पेमेंट कौन-कौन से मोड से की जा सकती है जैसे नेट बैंकिंग, UPI, Paytm आदि।
3. बायर और सेलर की मैचिंग: प्लेटफॉर्म का स्मार्ट इंजन यूजर की पसंद के आधार पर सही मैच ढूंढता है।
4. एस्क्रो सिस्टम: जैसे ही डील शुरू होती है, क्रिप्टोकरेंसी को एक Escrow Wallet में लॉक कर दिया जाता है, जिससे कोई धोखाधड़ी न हो।
5. पेमेंट और रिलीज: जैसे ही खरीददार पेमेंट करता है और उसे वैलीडेट करता है, सेलर एस्क्रो से क्रिप्टो रिलीज कर देता है।
6. डिस्प्यूट रिज़ॉल्यूशन: अगर किसी भी पार्टी को कोई समस्या होती है, तो हर P2P प्लेटफॉर्म का अपना डिस्प्यूट रिज़ॉल्यूशन मैकेनिज्म जैसे चैट बोट या कस्टमर सपोर्ट होता है जो इस तरह के मामलों से डील करता है।
P2P Crypto Exchange के मुख्य फीचर्स
एक मॉडल P2P प्लेटफॉर्म में निम्नलिखित फीचर होते हैं:
- Escrow System: सिक्योर ट्रांज़ैक्शन के लिए क्रिप्टो को थर्ड स्पेस में लॉक करना।
- मल्टी पेमेंट सपोर्ट: कई पेमेंट मोड्स जैसे UPI, बैंक, Paytm, IMPS आदि को सपोर्ट करता है।
- Advanced Matching Engine: सही बायर और सेलर को साथ लाने के लिए।
- यूजर रेटिंग सिस्टम: यूजर एक-दूसरे को रिव्यू कर सकते हैं, जिससे भरोसा बनता है।
- Security: 2 Factor Authentication, एन्क्रिप्शन और सिक्योर वॉलेट।
- Dispute Resolution: डिस्प्यूट का सॉल्यूशन प्रोफेशनल तरीके से किया जाता है।
P2P Crypto Exchange के फायदे
- ज्यादा प्राइवेसी: कई P2P प्लेटफॉर्म KYC नहीं मांगते, जिससे यूजर की प्राइवेसी बनी रहती है।
- कम फीस: मिडिलमैन न होने से ट्रांजैक्शन फीस बहुत कम हो जाती है।
- ग्लोबल एक्सेस: कोई फिजिकल बाउंड्री नहीं, भारत हो या विदेश, कहीं से भी ट्रेड कर सकते हैं।
- बेहतर सिक्योरिटी: सेंट्रल सर्वर न होने से हैकिंग का खतरा कम होता है। एस्क्रो सिस्टम ट्रेड को सुरक्षित बनाता है।
- फ्लेक्सिबल पेमेंट: आप अपनी पसंद के पेमेंट ऑप्शन चुन सकते हैं जो आपकी ट्रेड को और सुविधाजनक बनाता है।
- एसेट पर कंट्रोल: आपका फंड आपके पास रहता है उस पर किसी थर्ड पार्टी का कंट्रोल नहीं रहता है।
P2P Crypto Exchange की लिमिटेशन
जिस तरह हर चीज के दो पहलू होते हैं, उसी तरह P2P ट्रेडिंग के साथ भी कुछ संभावित रिस्क जुड़े हुए हैं:
- स्लो ट्रेडिंग: कई बार सेलर या बायर डील के बीच ब्रेक ले लेते हैं या पेमेंट में देरी करते हैं, क्रिप्टो जिस तरह का वोलेटाइल मार्केट है, यहाँ थोड़े समय में ही टोकन की वैल्यू बदल सकती हैं।
- कम लिक्विडिटी: अगर आपके ऑफर से मैच करता कोई बायर/सेलर नहीं मिल रहा, तो डील में देरी हो सकती है।
- धोखाधड़ी का रिस्क: प्लेटफॉर्म पर कुछ फेक प्रोफाइल्स या फेक ऑफर्स हो सकते हैं। इससे बचने के लिए आपको अच्छी रेटिंग वाले सेलर को ही चुनना चाहिए।
P2P Crypto Exchange Vs Centralised Exchange
P2P Crypto Exchange | Centralised Exchange(CEX) | |
ट्रांज़ैक्शन | सीधे बायर और सेलर के बीच | ऑटोमेटेड सिस्टम से |
थर्ड पार्टी | नहीं | होती है |
पेमेंट मोड | फ्लेक्सिबल (UPI, बैंक, क्रिप्टो आदि) | फ्लेक्सिबल |
स्पीड | तेजी से पूरी होती है | अपेक्षाकृत धीमी |
फीस | बहुत कम(एक्स्ट्रा फीस नहीं) | ज्यादा फीस(मिडिलमैन के कारण) |
कस्टडी | नॉन-कस्टोडियल | प्लेटफॉर्म पर एसेट जमा करना पड़ता है |
KYC | जरूरी नहीं | जरूरी होता है |
अगर आप एक नए क्रिप्टो ट्रेडर हैं और ट्रेडिंग के समय अपने एसेट की कस्टडी खुद रखना चाहते हैं और इसके साथ कम फीस और बेहतर सिक्योरिटी चाहते हैं, तो P2P Crypto Exchange आपके लिए एक शानदार ऑप्शन हो सकता है।
हालांकि, आपको सतर्क रहना होगा सही बायर चुनें, प्लेटफॉर्म की रेटिंग देखें और कभी भी ऑफ-प्लेटफॉर्म पेमेंट न करें। सही जानकारी और सावधानी के साथ, P2P क्रिप्टो ट्रेडिंग का एक स्मार्ट और फ्यूचर-रेडी तरीका है।