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 Tokenomics क्या है, इसका टोकन की वैल्यू पर प्रभाव जानिए

हम कई बार किसी क्रिप्टो प्रोजेक्ट के बारे में सुनते हैं कि “इस प्रोजेक्ट की Tokenomics बहुत मजबूत है” या “इस प्रोजेक्ट की खराब Tokenomics ने इसकी वैल्यू गिरा दी।” लेकिन आखिर ये Tokenomics होता क्या है? और यह किसी टोकन की प्राइस और यूटिलिटी को कैसे प्रभावित करता है?

जिस तरह से किसी देश की इकोनोमिक ग्रोथ उसके मोनेटरी सिस्टम, रिसोर्स डिस्ट्रीब्यूशन और कंसम्पशन की स्ट्रेटेजी पर निर्भर करती है, वैसे ही किसी क्रिप्टो प्रोजेक्ट की सफलता उसकी Tokenomics पर निर्भर करती है। यह एक ऐसा स्ट्रक्चर होता है जो तय करता है कि किसी प्रोजेक्ट के Token कब, कैसे, किस वैल्यू पर और किनके लिए जारी होंगे। इससे यह भी तय होता है कि उस टोकन की वैल्यू किस तरह से डिसाइड होगी और उसका भविष्य कैसा होने वाला है।

Tokenomics, टोकन के इकोनॉमिक बिहेवियर को डिफाइन करता है, जैसे टोकन सप्लाई कितनी होगी, डिमांड कैसे क्रिएट होगी, होल्डर्स को क्या रिवॉर्ड मिलेगा और प्रोजेक्ट टीम को कितना एलोकेशन मिलने वाला है। यही वजह है कि किसी भी इन्वेस्टर या क्रिप्टो यूज़र के लिए Tokenomics को समझना बहुत जरुरी होता है।

इस ब्लॉग में हम विस्तार से समझेंगे कि Tokenomics क्या होता है, यह कैसे काम करता है और इसे समझकर आप किसी भी टोकन में इन्वेस्टमेंट के लिए किस तरह से निर्णय ले सकते हैं?

Tokenomics क्या होता है?

Tokenomics शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, Token और Economics। इसका सीधा सा मतलब है, किसी क्रिप्टो टोकन का इकोनोमिक स्ट्रक्चर। लेकिन यह टर्म जितना आसान है, उतना ही ज्यादा महत्वपूर्ण भी है। Tokenomics वह फ्रेमवर्क है जो किसी क्रिप्टो प्रोजेक्ट के टोकन की पूरी लाइफ साइकल जैसे उसकी मिन्टिंग, डिस्ट्रीब्यूशन, यूटिलिटी और प्राइस को कण्ट्रोल करता है ।

एक मजबूत Tokenomics मॉडल यह सुनिश्चित करता है कि प्रोजेक्ट के टोकन की डिमांड बनी रहे, अधिक से अधिक लोग उसे होल्ड करें और सिस्टम में टोकन की यूटिलिटी बनी रहे। इसके साथ ही Tokenomics में किसी ब्लॉकचेन प्रोजेक्ट से यूज़र को मिलने वाले रिवॉर्ड, प्रोजेक्ट में यूजर की भूमिका और इन्वेस्टर के ट्रस्ट बनाए रखने के लिए किए गए उपाय भी शामिल होते हैं।

टोकन सप्लाई क्या होता है और उसके प्रकार

Token Supply, Tokenomics का सबसे इम्पोर्टेन्ट पार्ट होता है, यानी किसी टोकन की कुल अवेलेबिलिटी कितनी है और उसका डिस्ट्रीब्यूशन किस तरह से किया गया है। ठीक वैसे ही जैसे किसी देश में उसकी करेंसी की टोटल सप्लाई फिक्स होती है, वैसे ही हर क्रिप्टो प्रोजेक्ट में टोकन की लिमिटेड सप्लाई होती है, जो उसके प्राइस को सीधे इम्पैक्ट करती है।

टोकन सप्लाई के तीन प्रकार होते हैं:

Maximum Supply: कुल टोकन जो बनाए जा सकते हैं 

यह किसी टोकन की अधिकतम क्वांटिटी को दिखाती है, किसी भी स्थिति में इससे ज्यादा टोकन मिंट नहीं किये जा सकते हैं, इसमें मार्केट में सर्कुलेशन में शामिल सभी टोकन, सभी टोकन जो लॉक हैं और सभीटोकन जो भविष्य में बनाए जा सकते हैं, शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए, Bitcoin के Whitepaper के अनुसार इसकी Maximum Supply 21 मिलियन है।

Total Supply : कुल बनाए गए टोकन

यह वो सभी टोकन होते हैं जो अब तक मिंट किए जा चुके हैं, चाहे वे मार्केट में हो, किसी के द्वारा होल्ड किए गए हो या किसी कॉन्ट्रैक्ट में लॉक हों और फ्यूचर में रिलीज़ किए जाने वाले हों। 

Circulating Supply: टोकन जो मार्केट में रिलीज़ किए जा चुके हैं 

यह वो टोकन होते हैं जो इस समय बाजार में खुले तौर पर ट्रेड हो रहे होते हैं और लोगों के पास मौजूद होते हैं। किसी टोकन की करंट और मार्केट कैप इसी के आधार पर तय होती है।

किसी टोकन की सप्लाई से जुड़ा एक और अहम पहलू होता है, Token Emission Schedule, यह वो प्लानिंग होती है, जिसमे यह निर्धारित किया जाता है की टोकन कितनी क्वांटिटी में और कब-कब रिलीज़ होंगे। इसमें Presale, Airdrop, Token Generation Event, Vesting Schedule सभी शामिल होते हैं।

एक बैलेंस्ड सप्लाई प्राइस स्टेबिलिटी में मदद करती है। इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि अगर किसी टोकन की सप्लाई अचानक मार्केट में बढ़ जाएं, तो उसकी वैल्यू अचानक गिर सकती है। इसलिए अच्छी Tokenomics में सप्लाई का डिस्ट्रीब्यूशन धीरे-धीरे और सोच-समझकर किया जाता है।

टोकन एलोकेशन कैसे किया जाता है?
Tokenomics- Token Allocation
Token Allocation

Token Allocation का मतलब है कि कोई क्रिप्टो प्रोजेक्ट अपने टोकन को किन-किन हिस्सों में और किस उद्देश्य के लिए बाँटता है। इससे यह निर्धारित होता है कि किसी टोकन पर किसका कितना कंट्रोल रहेगा और मार्केट में टोकन प्राइस स्टेबल रहने की कितनी सम्भावना है।

टोकन एलोकेशन आमतौर पर इस तरह से होता है:

टीम और फाउंडर

हर प्रोजेक्ट अपनी कोर टीम के लिए एक निश्चित क्वांटिटी में टोकन रिजर्व करता है। यह आमतौर पर 10-20% होता है और अधिकतर प्रोजेक्ट में इसे वेस्टिंग शेड्यूल के तहत लॉक किया जाता है, जो यह निश्चित करता है की टीम प्रोजेक्ट के बीच में या अचानक टोकन न बेचे जा सके। किसी पंप एंड डंप स्कीम वाले प्रोजेक्ट में टोकन एलोकेशन का यह हिस्सा सबसे कमजोर होता है। 

इन्वेस्टर्स

Seed Funding और Private Sales में शामिल होने वाले शुरूआती इन्वेस्टर्स के लिए टोकन सप्लाई का यह हिस्सा रखा जाता है। यह भी वेस्टिंग शेड्यूल के तहत लॉक किए जाते हैं हालांकि इनका वेस्टिंग पीरियड प्रोजेक्ट टीम के मुकाबले छोटा होता है।

कम्युनिटी और इकोसिस्टम

किसी टोकन सप्लाई का यह भाग उन यूज़र्स के लिए रखा जाता है जो प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं, उस पर चल रही एक्टिविटी में शामिल होते हैं और नेटवर्क को ग्रो करने में मदद करते हैं। Airdrops, Rewards और Staking Incentives इसमें शामिल होते हैं।

ट्रेज़री और रिज़र्व

यह Tokenomics में टोकन सप्लाई का वह भाग होता है जिसे प्रोजेक्ट के फ्यूचर एक्स्पेंसेस, डेवलपमेंट और दूसरी जरूरतों को पूरा के लिए रिज़र्व रखा जाता है। इससे प्रोजेक्ट की सस्टेनेबिलिटी सुनिश्चित की जाती है।

पब्लिक सेल

ICO, IDO या Launchpad के ज़रिए जो टोकन मार्केट में बेचे जाते हैं और समय-समय पर मार्केट में रिलीज़ किए जाते हैं, वो इस कैटेगरी में आते हैं।

किसी प्रोजेक्ट की सफलता के लिए एक बैलेंस्ड टोकन एलोकेशन बहुत ज़रूरी होता है जिससे टीम और इन्वेस्टर्स के पास बहुत ज़्यादा कंट्रोल न हो और कम्युनिटी को भी एक्टिविटी और पार्टिसिपेशन के बदले में सही रिवॉर्ड मिल सके। ट्रांसपेरेंसी के लिए आजकल प्रोजेक्ट्स टोकन एलोकेशन चार्ट और वेस्टिंग डिटेल्स वेबसाइट पर पहले ही साझा कर देते हैं।

Token Emission Schedule: टोकन रिलीज़ की टाइमलाइन

यह निर्धारित करता है कि टोटल सप्लाई में से कितने टोकन कब और किस माध्यम से बाजार में लाए जाएंगे। यह न केवल प्रोजेक्ट की इकोनोमिक प्लानिंग का हिस्सा होता है, बल्कि इससे इन्वेस्टर्स का विश्वास और टोकन की मार्केट में सप्लाई का बैलेंस भी प्रभावित होता है।

आइए, इस प्रक्रिया को 3 स्टेप में समझते हैं:

Presale

Presale वह स्टेज होती है जहाँ प्रोजेक्ट टोकन को कम प्राइस पर इनिशियल इन्वेस्टर्स को बेचा जाता है। यह Seed, Private या Public Round के रूप में हो सकता है।
इससे प्रोजेक्ट को इनिशियल फंडिंग मिलती है, लेकिन अक्सर Presale में शामिल टोकन एक वेस्टिंग शेड्यूल के तहत लॉक किए जाते हैं जिससे की टोकन मार्केट में धीरे-धीरे रिलीज़ हो और डिमांड-सप्लाई का बैलेंस बना रहे।

Airdrop

यह प्रोजेक्ट के प्रमोशन का तरीका होता है जिसमें प्रोजेक्ट यूज़र्स को उनकी एक्टिविटीज के बदले में टोकन देता है जिससे वे प्रोजेक्ट से जुड़े और प्लेटफार्म पर एक्टिविटी को बढाए। हालांकि इससे टोकन की मार्केट सप्लाई बढ़ती है, लेकिन अगर डिस्ट्रीब्यूशन बिना वेस्टिंग के हो तो लिस्टिंग के समय यह शोर्ट टर्म सेल प्रेशर क्रिएट कर सकता है। इसीलिए एक स्मार्ट Token Emission Schedule में अक्सर Airdrop Event भी अलग-अलग फेज में होते हैं।

TGE (Token Generation Event)

Token Generation Event (TGE) वह प्रोसेस होती है जिसमें कोई ब्लॉकचेन प्रोजेक्ट पहली बार अपने टोकन को बनाता और लॉन्च करता है। इस इवेंट के दौरान फिक्स्ड क्वांटिटी में टोकन बनाए जाते हैं और इन्वेस्टर्स, यूज़र्स और कम्युनिटी में डिस्ट्रीब्यूट किए जाते हैं।

TGE ही वह दिन होता है जब टोकन को पहली बार ऑन-चेन जारी किया जाता है और ज्यादातर प्रोजेक्ट्स में यह एक्सचेंज पर लिस्टिंग के दिन होता है। इस दिन टोकन की पब्लिक ट्रेडिंग शुरू होती है और इसी समय Presale और Airdrop के कुछ हिस्से भी अनलॉक हो सकते हैं। इस समय मार्केट में लिक्विडिटी की जरूरत होती है, इसलिए प्रोजेक्ट्स अक्सर TGE से पहले या साथ ही लिक्विडिटी पूल भी सेटअप करते हैं।

एक अच्छा और स्मार्ट एमिशन शेड्यूल टोकन की प्राइस को स्टेबल रखने, इन्वेस्टर्स के हितों की रक्षा करने और प्रोजेक्ट के इकोसिस्टम को सस्टेनेबल बनाए रखने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

Tokenomics से जुड़े फैक्टर्स जो किसी टोकन की मार्केट वैल्यू को प्रभावित करते हैं

इन्वेस्टर्स, यूजर और डेवलपर के लिए यह समझना बहुत ज़रूरी है कि मार्केट में टोकन की वैल्यू केवल Tokenomics पर निर्भर नहीं करती बल्कि और भी कई फैक्टर्स होते हैं जो इसे प्रभावित करते हैं:

टोकन एलोकेशन 

यह किसी टोकन की मार्केट वैल्यू को प्रभावित करने वाला सबसे प्राइमरी फैक्टर है, यह डिसाइड करता है की किसे कितने टोकन कब मिलेंगे और इन टोकन का वेस्टिंग पीरियड क्या होगा। क्योंकि अगर प्रोजेक्ट की शुरुआत में ही बड़ी क्वांटिटी में टोकन बाजार में आ जायेंगे तो सेलिंग प्रेशर के कारण टोकन की वैल्यू इनिशियल लेवल पर ही गिरने की सम्भावना बन जाती है।    

यूटिलिटी

अगर किसी टोकन को मार्केट में केवल स्पेक्युलेटिव एसेट की तरह देखा जा रहा है, तो उसकी प्राइस लंबे समय तक स्टेबल नहीं रह सकती है। लेकिन अगर उसका उपयोग DApps, गेम या सर्विस में गवर्नेंस, गैस फीस, स्टेकिंग या इन-ऐप पेमेंट में किया जाता है तो उसकी वैल्यू के सस्टेनेबल रहने की सम्भावना ज्यादा होती है।

डिमांड और सप्लाई

अगर टोकन की सप्लाई लिमिटेड है और उसका उपयोग लगातार बढ़ रहा है, तो डिमांड और सप्लाई में कमी के कारण उसकी वैल्यू बढ़ने की सम्भावना प्रबल होती है। Bitcoin इसका सबसे मजबूत उदाहरण है।

लिक्विडिटी और एक्सचेंज पर लिस्टिंग

टोकन जितने ज़्यादा एक्सचेंजों और लिक्विडिटी पूल पर लिस्टेड होता है, वह उतना ही ज़्यादा एक्सेसिबल होता है। इससे उस टोकन का ट्रेड वॉल्यूम बढ़ता है और उसके प्राइस में स्टेबिलिटी आती है।

टोकन बर्न और Buyback

कुछ प्रोजेक्ट्स अपनी टोकन सप्लाई का कुछ भाग समय-समय पर Burn करते हैं मतलब उसे परमानेंटली सर्कुलेशन से हटा देते हैं। इससे सप्लाई में कमी आती है, ऐसे में अगर टोकन की डिमांड उतनी ही बनी रहे तब भी उसकी प्राइस पर पॉजिटिव इम्पैक्ट पड़ सकता है।

कम्युनिटी ट्रस्ट और इकोसिस्टम ग्रोथ

टोकन की वैल्यू केवल टेक्नोलॉजी से नहीं, बल्कि लोगों के भरोसे और प्रोजेक्ट की ग्रोथ से बनती है। एक स्ट्रांग और एक्टिव कम्युनिटी, टोकन की मार्केट वैल्यू को आर्गेनिक तरीके से सपोर्ट करती है।

इस तरह से हमने समझा की Tokenomics सिर्फ टोकन की सप्लाई मैनेज करने या प्राइस कण्ट्रोल करने का टूल नहीं है बल्कि प्रोजेक्ट की फाउंडेशन और उसके पूरे विज़न का हिस्सा है। किसी भी टोकन का इकोनोमिक मॉडल यह तय करता है कि उसका इकोसिस्टम किस तरह से क्रिएट होगा, यूज़र प्रोजेक्ट से कैसे इंटरैक्ट करेंगे और इन्वेस्टर्स को प्रोजेक्ट से क्या उम्मीद करनी चाहिए।

एक अच्छा Tokenomics डिज़ाइन न केवल टोकन की वैल्यू बढाता है बल्कि कम्युनिटी को ट्रस्ट, डेवलपर्स को विज़न और पूरे प्रोजेक्ट इकोसिस्टम को स्टेबिलिटी भी प्रोवाइड करता है। सही तरीके से डिज़ाइन किया गया एमिशन शेड्यूल, फेयर लॉन्च मॉडल, स्टैकिंग रिवार्ड्स और बर्न मैकेनिज्म मिलकर किसी क्रिप्टो प्रोजेक्ट की लॉन्ग टर्म सफलता की नींव रखते हैं।

Ronak GhatiyaRonak Ghatiya
Ronak Ghatiya
Hindi Content Writer
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