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जानिए आखिर Web 2.0 से किस प्रकार अलग है Web 3.0

Web 3.0 में ब्लॉकचेन और स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट जैसी डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजीज को शामिल किया गया है, जो Web 2.0 की तुलना में डेटा और ट्रांजेक्शन पर अधिक यूजर कंट्रोल और प्राइवेसी को सक्षम बनाता है।

2010 की शुरुआत में वेब Web 3.0 एक कॉन्सेप्ट के रूप में उभरना शुरू हुआ, जो अधिक डिसेंट्रलाइज्ड और उपयोगकर्ता-केंद्रित इंटरनेट की आवश्यकता से प्रेरित था। ब्लॉकचेन, डिसेंट्रलाइज्ड नेटवर्क और स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट जैसी तकनीकों का लाभ उठाकर Web 2.0 के मुद्दों को हल करने के लिए Web 3.0 बनाया गया था। इसका उद्देश्य व्यक्तियों को सशक्त बनाना, गोपनीयता बढ़ाना, पीयर-टू-पीयर इंटरैक्शन सक्षम करना और उपयोगकर्ताओं को उनके डेटा और डिजिटल पहचान पर अधिक नियंत्रण प्रदान करना है। Web 3.0 ओपन, ट्रांसपेरेंट और फ्लेक्सिबल इंटरनेट बनाने का प्रयास करता है जो ऑटोनोमी, इन्क्लूसिविटी और इनोवेशन को बढ़ावा देता है।

Web 3.0 और Web 2.0 के बीच प्रमुख अंतर

डिसेंट्रलाइज्ड: Web 3.0 डिसेंट्रलाइज्ड पर जोर देता है, जबकि Web 2.0 की विशेषता सेंट्रलाइज्ड प्लेटफॉर्म है। Web 3.0 इंटर मीडिएटर को हटाने और उपयोगकर्ताओं को उनके डेटा और इंटरैक्शन पर अधिक कंट्रोल देने के लिए ब्लॉकचेन और डिस्ट्रिब्यूटेड सिस्टम जैसी टेक्नोलॉजीज का लाभ उठाता है।

यूजर कंट्रोल: Web 3.0 उपयोगकर्ताओं को उनकी डिजिटल उपस्थिति पर बेहतर कंट्रोल प्रदान करता है। व्यक्तियों के पास अपने डेटा, आइडेंटिटी और डिजिटल एसेट पर स्वामित्व और संप्रभुता होती है, जबकि Web 2.0 प्लेटफॉर्म अक्सर उपयोगकर्ता डेटा पर स्वामित्व और नियंत्रण बनाए रखते हैं।

प्राइवेसी: Web 3.0 डिज़ाइन द्वारा प्राइवेसी को प्राथमिकता देता है। इसका उद्देश्य एन्क्रिप्शन और डिसेंट्रलाइज्ड प्रोटोकॉल के माध्यम से निजी और सुरक्षित इंटरैक्शन को सक्षम करना है। इसके विपरीत, Web 2.0 प्लेटफ़ॉर्म अक्सर यूजर डेटा कलैक्ट और मोनेटाइज करते हैं, जिससे प्राइवेसी भंग होने की चिंता बढ़ जाती है।

ट्रस्ट और सिक्योरिटी: Web 3.0 ट्रस्ट मैकेनिज्म को शामिल करता है, जैसे स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट, जो इंटर मीडिएटर पर भरोसा किए बिना सिक्योर और ट्रांसपेरेंट ट्रांजेक्शन की सुविधा प्रदान करता है। Web 2.0 ट्रस्ट के लिए सेंट्रलाइज्ड इंस्टीटूशन्स पर निर्भर करता है, जो कमजोरियों और विफलता के एकल बिंदुओं से ग्रस्त हो सकते हैं।

इनोवेशन और इंटरऑपरेबिलिटी: Web 3.0 ओपन प्रोटोकॉल और स्टैंडर्ड्स के माध्यम से इनोवेशन और इंटरऑपरेबिलिटी को बढ़ावा देता है। यह डिसेंट्रलाइज्ड एप्लीकेशन (dApps) के विकास को प्रोत्साहित करता है जो विभिन्न प्लेटफार्मों पर सहजता से बातचीत कर सकते हैं। दूसरी ओर, Web 2.0 प्लेटफॉर्म अक्सर बंद इकोसिस्टम के भीतर काम करते हैं।

कुल मिलाकर, Web 3.0 का उद्देश्य Web 2.0 की अधिक सेंट्रलाइज्ड और डेटा-संचालित प्रकृति की तुलना में अधिक उपयोगकर्ता-केंद्रित, डिसेंट्रलाइज्ड और प्राइवेसी-केंद्रित इंटरनेट अनुभव प्रदान करना है, जो अधिक नियंत्रण, सुरक्षा और इंटरऑपरेबिलिटी प्रदान करता है।

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Rohit Tripathi
Hindi Content Writer
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