Web3 में Data Ownership कैसे काम करती है, जानिए विस्तार से
Web2 के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमें हर क्लिक, हर ट्रांज़ैक्शन और हर ऑनलाइन एक्शन पर पूरा कंट्रोल कंपनियों का होता है। जिसके कारण लगातार Data Breach और डाटा के मिस यूज़ जैसी घटनाएं आये दिन सामने आती रहती है। Web3 इसी समस्या के समाधान की ओर एक कदम है, जहां Data Ownership को कंपनियों के हाथ से निकालकर यूजर को देने का संकल्प रखा गया है। लेकिन सवाल ये है कि Web3 में Data Ownership असल में काम कैसे करती है? क्या ये सिर्फ थ्योरी है या कुछ ठोस बदल भी रहा है?
इस ब्लॉग में हम Web3 की डाटा ओनरशिप को लेकर सभी ज़रूरी पहलुओं जैसे टेक्नोलॉजी, यूज़र कंट्रोल, सिक्योरिटी और डिजिटल आइडेंटिटी को समझेंगे।
Web2 में डाटा का कंट्रोल किसके पास होता है?
Web2 मॉडल में डाटा का कंट्रोल हमेशा Facebook, Google, Amazon, Instagram आदि प्लेटफ़ॉर्म्स के पास होता है। जब आप किसी ऐप या वेबसाइट पर कोई प्रोफ़ाइल बनाते हैं, तो आपकी हर एक्टिविटी का डाटा उनके सेंट्रलाइज्ड सर्वर पर सेव होता है। जिसके कारण वे आपकी पर्सनल इनफार्मेशन को ऐड नेटवर्क्स या थर्ड पार्टीज़ के साथ शेयर या मॉनेटाइज़ कर सकते हैं। इस तरह से आपको अक्सर ये भी नहीं पता होता कि आपका कौन-सा डाटा कैसे इस्तेमाल हो रहा है, यह एक यूजर की प्राइवेसी का बड़ा वायलेशन है जिससे बचने का कोई उपाय Web2 यूजर के पास नहीं होता है।
इस तरह से इस सेंट्रलाइज्ड सिस्टम में यूज़र के पास ना अपने डाटा पर कंट्रोल होता है, ना ही उसके उपयोग को लेकर किसी प्रकार की ट्रांसपेरेंसी ही होती है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसने Web2 यूजर के जीवन को प्रभावित करने की क्षमता पा ली है। क्योंकि इस डाटा का उपयोग करके कंपनियां यूजर की इन्टरनेट हिस्ट्री को फॉलो करते हुए अपने प्रोडक्ट्स और सर्विस को उसके सामने रखती है, जिसके कारण यूजर की स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है।
Web3, Web2 कंपनियों द्वारा यूजर के पर्सनल डाटा को कण्ट्रोल किए जाने और उसके मिस यूज़ के विरुद्ध आन्दोलन के रूप में सामने आया है। Web3 यूजर को उसके डाटा पर ओनरशिप और कंट्रोल देने का वादा करता है। आइये इसके बारे में विस्तार से समझते हैं कि Web3 में Data Ownership का क्या मतलब है?
Web3 में Data Ownership का मतलब क्या है?
Web3 में Data Ownership का मतलब है कि यूज़र अपने डाटा का स्वयं मालिक होता है और वो खुद तय करता है कि कौन उसका डाटा देख सकता है, इस्तेमाल कर सकता है या शेयर कर सकता है। ऐसा Web3 के बेसिक स्ट्रक्चर के कारण संभव होता है, जिसके कारण Web3 सिस्टम में डाटा डिसेंट्रलाइज़्ड होता है यानी कोई एक कंपनी या अथॉरिटी उसे कंट्रोल नहीं करती।
यूज़र अपने डाटा को अपने क्रिप्टो वॉलेट या Private Key से एक्सेस और कंट्रोल करता है, और इस डाटा को एक्सेस करने का यही एक जरिया होता है। यूजर का डाटा एक Blockchain या डिसेंट्रलाइज़्ड स्टोरेज पर सुरक्षित रहता है और इसकी ओनरशिप आपके पास होती है।
Web3 में यह Self Sovereign Identity और Web3 Wallet के उपयोग से संभव हो पाता है, आइये जानते हैं यह कैसे काम करते हैं।
Self Sovereign Identity (SSI) और Web3 वॉलेट का रोल
Web3 में SSI (Self Sovereign Identity) और वॉलेट का रोल बहुत इम्पोर्टेन्ट होता है।
- SSI, Web3 यूज़र को अपनी डिजिटल आइडेंटिटी का ओनर बनाता है, जिसके उपयोग के द्वारा उसे अपनी आइडेंटिटी प्रूफ करने के लिए बार-बार नया अकाउंट नहीं बनाना पड़ता है।
- Web3 में वॉलेट जैसे MetaMask, Phantom आदि सिर्फ टोकन होल्ड करने का टूल नहीं होते हैं बल्कि ये डिजिटल आइडेंटिटी, परमिशन और डाटा एक्सेस का गेटवे भी होते हैं।
उदाहरण के लिए अगर कोई यूजर किसी DAO में वोट करना चाहता है, तो उसे प्रूफ करना होता है कि वो वेरिफाइड मेंबर है और उसके बाद ही वह वोटिंग में हिस्सा ले सकता है। इसके लिए उसे अपना SSI और वॉलेट दोनों का यूज़ करना पड़ता है।
इस तरह से हम समझ सकते है की Web3 पर आइडेंटिटी प्रूफ करने के तरीके को ही ऐसा बनाया गया ही की उसके लिए यूजर को बहुत ज्यादा डाटा शेयर करने की जरुरत नहीं होती है। लेकिन फिर भी आपके मन में यह सवाल तो जरुर आया होगा कि Web3 से जुड़ा डाटा कहाँ स्टोर होता है, आइये इसका जवाब जानते हैं।
Web3 में डाटा कहां स्टोर होता है?
Web3 में डाटा स्टोरेज डिसेंट्रलाइज़्ड स्टोरेज नेटवर्क्स पर होता है। इनमें से कुछ प्रमुख सिस्टम्स हैं:
- IPFS (InterPlanetary File System): एक डिसेंट्रलाइज़्ड फ़ाइल सिस्टम जहां डाटा अलग-अलग नोड्स पर स्टोर होता है, जिसके कारण इस पर किसी एक कंपनी का कण्ट्रोल नहीं रहता है।
- Arweave: यह परमानेंट स्टोरेज सॉल्यूशन होता है, जिस पर एक बार डाटा स्टोर किए जाने के बाद वो हमेशा बना रहता है।
- Filecoin: यह भी IPFS जैसा ही सिस्टम होता है लेकिन इसमें स्टोरेज स्पेस को मॉनेटाइज़ किया गया है, मतलब इस पर डाटा स्टोर करने के लिए कुछ शुल्क भी देना पड़ता है।
इसका फायदा ये होता है कि डाटा न सिर्फ सिक्योर होता है, बल्कि कोई भी एक अथॉरिटी इसे सेंसर या इसका मिसयूज नहीं कर पाती है। लेकिन अब यह प्रश्न सामने आता है की जब डाटा इस तरह से डिसेंट्रलाइज़्ड सर्वर पर स्टोर होता है तो फिर इसे कैसे एक्सेस कैसे किया जाता है? आइये जानते हैं,
Web3 में डाटा एक्सेस कैसे होता है?
डाटा एक्सेस Web3 में Blockchain की परमिशन लेयर से नियंत्रित होता है। जिसपर केवल आपका कण्ट्रोल होता है, जैसे:
- आपने जिन DApps को एक्सेस देने की अनुमति दी है, केवल वही आपके डाटा को देख सकती हैं।
- Access देने के लिए यूज़र स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स के ज़रिए एक्सिक्यूट करता है कि कौन-सा डाटा, किस टर्म्स पर शेयर किया जाएगा।
इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि अगर आप किसी NFT Platform से जुड़ते हैं, तो जब तक आप परमिशन न दें वह सिर्फ आपकी वॉलेट ID तक एक्सेस ले सकता है, पूरे वॉलेट कंटेंट तक नहीं। इस तरह से Web3 ने डाटा का कण्ट्रोल पूरी तरह से यूजर के हाथ में दे दिया है, लेकिन इसके साथ ही Web3 ने Data Monetization का भी नया मॉडल सामने रखा है, जो यह सुनिश्चित करता है की यूजर के पास न केवल उसके डाटा का कण्ट्रोल हो, बल्कि वह उसका उपयोग भी कर पाए। आइये जानते हैं, कैसे।
Web3 में Data Monetization का नया मॉडल
Web3 में डाटा का मॉनेटाइज़ेशन मॉडल पूरी तरह बदल गया है। अब यूज़र्स खुद अपने डाटा से कमा सकते हैं।
- जैसे कुछ प्लेटफ़ॉर्म्स यूजर को अपना डाटा शेयर करने के बदले में टोकन रिवॉर्ड देते हैं, जैसे Lens Protocol या DataUnion।
- यूजर चुन सकते हैं कि उसका डाटा AI मॉडल्स, मार्केट रिसर्च या Ad Networks के लिए कब और कैसे उपलब्ध कराया जाए।
- Web3 का यह मॉडल यूज़र को डाटा इकोनॉमी में एक सक्रिय पार्टिसिपेंट बनाता है, न कि सिर्फ एक टार्गेट।
हालांकि इतना सब होने के बावजूद यूजर को अपनी कुछ प्राइवेट जानकारी KYC जैसी वेरिफिकेशन प्रोसेस के लिए तो शेयर करनी ही पड़ती है, इसका उपाय डेवलपर्स ने Zero Knowledge Proofs के रूप में दिया है।
Zero Knowledge Proofs (ZKPs): डाटा शेयर किए बिना वेरिफ़ाई करने का तरीका
ZKP एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जिससे आप कोई जानकारी बिना उसे पब्लिक किए वेरिफ़ाई कर सकते हैं। इसका उपयोग वहां किया जाता है जहाँ यूजर बिना पूरी जानकारी बताए भी उसे वेरीफाई कर सकता है, जैसे अगर ये साबित करना है कि आप 18+ हैं तो आप केवल जन्म का साल बताना जरुरी है, पूरी डेट बताने की जरुरत नहीं है। ZKPs इसी सिस्टम पर काम करते हैं, इस तरह से ZKPs डाटा प्राइवेसी और सिक्योरिटी के लिए गेम चेंजर हैं, क्योंकि वे सिक्योरिटी और प्राइवेसी दोनों को बैलेंस करते हैं।
इस तरह से हम समझ सकते हैं कि Web3 में डिजिटल वेल्थ पर वाकई हमारा कंट्रोल होने से जुड़े सभी उपाय किए गए हैं। जिसके कारण Web3 सिर्फ प्राइवेसी का वादा नहीं करता बल्कि इसका स्ट्रक्चर ही आपके डाटा पर आपका कण्ट्रोल सुनिश्चित करता है।
Web2 में यूजर की डिजिटल वेल्थ जैसे:आइडेंटिटी, डाटा, ट्रांज़ैक्शन हिस्ट्री, सोशल क्रेडिबिलिटी सब किसी न किसी सेंट्रलाइज़्ड अथोरिटी के कंट्रोल में है, Web3 इस वेल्थ को वापस यूज़र के वॉलेट में लाने की कोशिश है। लेकिन ये ट्रांज़िशन आसान नहीं है, इसके लिए यूज़र्स को टेक्नोलॉजी की समझ होना फिलहाल पहली शर्त है, इसके साथ ही वॉलेट सिक्योर रखना और सही प्रोटोकॉल चुनने जैसी कोम्प्लेक्सिटी से अभी भी डील करना बाकी है।
Web3 डाटा ओनरशिप का सफर एक टेक्निकल रिवोल्यूशन से ज्यादा, एक सोशल रिवोल्यूशन है। इसमें हर यूज़र को न सिर्फ अपनी डिजिटल प्रॉपर्टी पर कंट्रोल मिलता है, बल्कि एक ऐसी दुनिया में पार्टिसिपेशन का मौका भी, जहां डाटा सिर्फ प्रॉडक्ट नहीं एक एसेट है।